Saturday, August 2, 2014

हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए...

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
---------------------- दुष्यंत कुमार 

Thursday, January 2, 2014

तेरे द्वार खड़ा भगवान...


तेरे द्वार खड़ा भगवान,
भगत भर दे रे झोली,
तेरा होगा बड़ा एहसान,
की युग युग तेरी रहेगी शान,
भगत भर दे ........

डोल उठी है सारी धरती देख रे,
डोला गगन है सारा ,
भीख मांगने आया तेरे घर,
जगत का पालनहारा रे,
मैं आज तेरा मेहमान,
कर ले रे मुझ से जरा पहचान,
भगत भर दे .....

आज लुटा दे रे सर्वस अपना,
मान ले रे कहना मेरा ,
मिट जायेगा पल में तेरा,
जनम जनम का फेरा रे ,
तू छोड़ सकल अभिमान,
अमर कर ले रे तू अपना दान,
भगत भर दे......

तेरे द्वार खड़ा भगवान,
भगत भर दे रे झोली,
तेरा होगा बड़ा एहसान,
के युग युग तेरी रहेगी शान,
भगत भर दे .........