Tuesday, December 15, 2020

मुनव्वर राणा की शायरी....

किसी को हिस्से मै घर मिला किसी के हिस्से दुकाँ आई 
मैं घर मे सब से छोटा था मेरे हिस्से मै माँ आई 
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ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया 
माँ ने आँख खोल दीं घर मै उजाला हो गया 
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ये हम भी जानते हैं ओढ़ने मै लुत्फ़ आता है 
मगर सुनते हैं चादर रेशमी अच्छी नहीं होती 
 
माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना 
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती 
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इश्क है तो इश्क का इजहार होना चािहये  
आपको चेहरे से भी बीमार होना चािहये 
 
अपनी यादों से कहो एक दिन की छुट्टी दें मुझे 
इश्क के हिस्से मै भी इतवार होना चािहए 
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हमारे कुछ गुनाहों की सज़ा भी साथ चलती है 
हम अब तन्हा नहीं चलते दवा भी साथ चलती है 
 
अभी जिन्दा है माँ मेरी मुझे कु छ भी नहीं होगा 
मै जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
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बुलन्दी देर तक किस शख्स के हिस्से मै रहती है
बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे मे रहती है 

यह ऐसा कर्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता 
मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सजदे मे रहती है 
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बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है 
न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती है 
 
बड़े-बूढे कुएँ मे नेकियाँ क्यों फेंक आते हैं 
कुएँ मै छुपके आख़िर क्यों ये नेकी बैठ जाती है 
 
सियासत नफ़रतों का ज़ख्म  भरने ही नहीं देती 
जहाँ भरने पे आता है तो मक्खी बैठ जाती है 
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राहत इन्दौरी की शायरी….

उँगलियाँ यूँ सब पर उठाया करो
खर्च करने से पहले कमाया करो

ज़िन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे
बारिशों में पतंगें उड़ाया करो
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अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ लोग थे सब खुल के आ गये
 
सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवकूफ
सारे सिपाही मोम के थे घुल के आ गये 
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उसने जिस ताक पे कुछ टूटे दीये रखें हैं 
चॉद तारों को भी ले जाकर वहीं पर र दो 
 
अब कहां ढूंढने जाओगे हमारे क़ातिल 
आप तो क़त्ल का इल्जाम हमीं पर रख दो 
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बुलाती है मगर जाने का नहीं
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं

मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुज़र जाने का नहीं

सितारे नोच कर ले जाऊंगा
मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं
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अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब हैं
लोगो ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया

दो गज सही ये मेरी मिलकियत तो हैं
ऐ मौत तूने मुझको ज़मीदार कर दिया
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झूठों ने झूठों से कहा है कि सच बोलो

सरकारी एलान हुआ है कि सच बोलो


घर के अंदर झूठों की एक मंडी है

दरवाजे पर लिखा हुआ है सच बोलो


गंगा मैया , डूबने वाले अपने थे 

नाव में किसने छेद किया , सच बोलो

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बशीर बद्र की शायरी..

मोहब्बतों मै दिखाबे की दोस्ती न मिला 
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला 
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परखना मत परखने मै कोई अपना नहीं रहता 
किसी भी आईने मै देर तक चेहरा नहीं रहता 

बड़े लोगों से मिलने मै हमेशा फासला रखना 
जहाँ दरिया समन्दर से मिला दरिया नहीं रहता 

मोहब्बत एक खुशबु है हमेशा साथ चलती है 
कोई इंसान तन्हाई मै भी तन्हा नहीं रहता 

तुम्हारा शहर तो बिलकुल नए अंदाज वाला है 
हमारे शहर मै भी अब कोई हमसा नहीं रहता 
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गुरुर उसपे बहुत सजता है मगर कह दो 
इसी मै उसका भला है गुरुर कम कर दे 

यहाँ लिवास की कीमत है आदमी की नहीं 
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे 
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यूँ ही बे-सबब न फिरा करो, कोई शाम घर में भी रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो

कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से 
ये नए मिज़ाज का शहर है जरा फासले से मिला करो 
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लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने मै 
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने मै

फ़ाख़्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकती
कौन साँप रखता है उस के आशियाने में

हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं 
उम्रे बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने मै 
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बाहर न आओ घर मै रहो तुम नशे मे हो 
सो जाओ दिन को रात करो तुम नशे में हो 

बेहद शरीफ लोगों से कुछ फासला रखो 
पी लो मगर कभी न कहो तुम नशे में हो 

कागज़ का ये लिवाज़ चिरागों के शहर में 
जाना सॅभल सॅभल के चलो तुम नशे में हो 

मासूम तितलियों को मसलने का शौक है 
तौबा करो खुदा से डरो तुम नशे में हो 
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Sunday, December 13, 2020

सफ़र में धूप तो होगी.....निदा फ़ाजली

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिराके अगर तुम सम्भल सको तो चलो
यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो

Monday, September 14, 2020

राजेश जोशी : ...जो सच-सच बोलेंगे, मारे जाएँगे....

 मारे जाएँगे 


जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे 
मारे जाएँगे

कठघरे में खड़े कर दिये जाएँगे, जो विरोध में बोलेंगे
जो सच-सच बोलेंगे, मारे जाएँगे

बर्दाश्‍त नहीं किया जाएगा कि किसी की कमीज़ हो
'उनकी' कमीज़ से ज़्यादा सफ़ेद
कमीज़ पर जिनके दाग़ नहीं होंगे, मारे जाएँगे

धकेल दिए जाएंगे कला की दुनिया से बाहर, जो चारण नहीं 
जो गुन नहीं गाएंगे, मारे जाएँगे

धर्म की ध्‍वजा उठाए जो नहीं जाएँगे जुलूस में
गोलियां भून डालेंगी उन्हें, काफ़िर करार दिये जाएँगे

सबसे बड़ा अपराध है इस समय 
निहत्थे और निरपराधी होना
जो अपराधी नहीं होंगे 
            मारे जाएँगे। 

- राजेश जोशी 
   (सितंबर, 1988)

साभार - राजेश जोशी, प्रतिनिधि कविताएँ, राजकमल प्रकाशन 

Wednesday, April 22, 2020

हे शारदे माँ...


हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तारदे माँ

तू स्वर की देवी, ये संगीत तुझसे
हर शब्द तेरा है, हर गीत तुझसे
हम है अकेले, हम है अधूरे
तेरी शरण हम, हमें प्यार दे माँ

हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तारदे माँ

मुनियों ने समझी, गुनियों ने जानी
वेदोंकी भाषा, पुराणों की बानी
हम भी तो समझे, हम भी तो जाने
विद्या का हमको अधिकार दे माँ

हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तारदे माँ

तू श्वेतवर्णी, कमल पर विराजे
हाथों में वीणा, मुकुट सर पे साजे
मनसे हमारे मिटाके अँधेरे,
हमको उजालों का संसार दे माँ

हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तारदे माँ

Tuesday, February 11, 2020

हबीब जालिब की मशहूर नज़्म...

दीप जिस का महल्लात ही में जले
चंद लोगों की ख़ुशियों को ले कर चले
वो जो साए में हर मस्लहत के पले
ऐसे दस्तूर को सुब्ह--बे-नूर को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता

मैं भी ख़ाइफ़ नहीं तख़्ता--दार से
मैं भी मंसूर हूँ कह दो अग़्यार से
क्यूँ डराते हो ज़िंदाँ की दीवार से
ज़ुल्म की बात को जहल की रात को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता 

फूल शाख़ों पे खिलने लगे तुम कहो
जाम रिंदों को मिलने लगे तुम कहो
चाक सीनों के सिलने लगे तुम कहो
इस खुले झूठ को ज़ेहन की लूट को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता 

जाने क्यूँ तुमने लूटा हमारा सुकूँ
अब  हम पर चलेगा तुम्हारा फ़ुसूँ
चारागर दर्दमंदों के बनते हो क्यूँ
तुम नहीं चारागर कोई माने मगर
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता