जो दिख रहा है सामने वो दृश्य मात्र है,
लिखी रखी है पटकथा, मनुष्य पात्र है.
नए नियम समय के हैं~ असत्य; सत्य है,
भरा पड़ा है छल से जो वही सुपात्र है.
विचारशील मुग्ध हैं ‘कथित प्रसिद्धि’ पर,
विचित्र है समय, विवेक शून्य-मात्र है.
है साम-दाम-दंड-भेद का नया चलन,
कि जो यहाँ सुपात्र है, वही कुपात्र है.
घिरा हुआ है पार्थ-पुत्र चक्रव्यूह में,
असत्य सात और सत्य एक मात्र है.
कहीं कबीर, सूर की, कहीं नज़ीर की,
परम्परा से धन्य ये ग़ज़ल का छात्र है.
Sunday, November 14, 2021
Thursday, May 13, 2021
इतनी शक्ति हमें दे न दाता...
इतनी शक्ति हमें दे न दाता
मनका विश्वास कमज़ोर हो ना
हम चलें नेक रास्ते पे हमसे
भूलकर भी कोई भूल हो ना...
दूर अज्ञान के हो अन्धेरे
तू हमें ज्ञान की रौशनी दे
हर बुराई से बचके रहें हम
जितनी भी दे, भली ज़िन्दगी दे
बैर हो ना किसीका किसीसे
भावना मन में बदले की हो ना...
हम चले...
हम न सोचें हमें क्या मिला है
हम ये सोचें किया क्या है अर्पण
फूल खुशियों के बाटें सभी को
सबका जीवन ही बन जाये मधुबन
अपनी करुणा को जल तू बहा के
करदे पावन हर इक मन का कोना...
हम चले...
हर तरफ़ ज़ुल्म है बेबसी है
सहमा-सहमा-सा हर आदमी है
पाप का बोझ बढ़ता ही जाये
जाने कैसे ये धरती थमी है
बोझ ममता से तू ये उठा ले
तेरी रचना का ही अन्त होना...
हम चले...
हम अन्धेरे में हैं रौशनी दे,
खो ना दे खुद को ही दुश्मनी से,
हम सज़ा पाये अपने किये की,
मौत भी हो तो सह ले खुशी से,
कल जो गुज़रा है फिरसे ना गुज़रे,
आनेवाला वो कल ऐसा हो ना...
हम चले नेक रास्ते पे हमसे,
भुलकर भी कोई भूल हो ना...
इतनी शक्ति हमें दे ना दाता,
मनका विश्वास कमज़ोर हो ना...
Sunday, April 11, 2021
Subscribe to:
Posts (Atom)