Sunday, November 14, 2021

ग़ज़ल l Ghazal by Alok Srivastav

जो दिख रहा है सामने वो दृश्य मात्र है,
लिखी रखी है पटकथा, मनुष्य पात्र है.

नए नियम समय के हैं~ असत्य; सत्य है,
भरा पड़ा है छल से जो वही सुपात्र है.

विचारशील मुग्ध हैं ‘कथित प्रसिद्धि’ पर,
विचित्र है समय, विवेक शून्य-मात्र है.

है साम-दाम-दंड-भेद का नया चलन,
कि जो यहाँ सुपात्र है, वही कुपात्र है.

घिरा हुआ है पार्थ-पुत्र चक्रव्यूह में,
असत्य सात और सत्य एक मात्र है.

कहीं कबीर, सूर की, कहीं नज़ीर की,
परम्परा से धन्य ये ग़ज़ल का छात्र है.