Tuesday, December 15, 2020

बशीर बद्र की शायरी..

मोहब्बतों मै दिखाबे की दोस्ती न मिला 
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला 
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परखना मत परखने मै कोई अपना नहीं रहता 
किसी भी आईने मै देर तक चेहरा नहीं रहता 

बड़े लोगों से मिलने मै हमेशा फासला रखना 
जहाँ दरिया समन्दर से मिला दरिया नहीं रहता 

मोहब्बत एक खुशबु है हमेशा साथ चलती है 
कोई इंसान तन्हाई मै भी तन्हा नहीं रहता 

तुम्हारा शहर तो बिलकुल नए अंदाज वाला है 
हमारे शहर मै भी अब कोई हमसा नहीं रहता 
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गुरुर उसपे बहुत सजता है मगर कह दो 
इसी मै उसका भला है गुरुर कम कर दे 

यहाँ लिवास की कीमत है आदमी की नहीं 
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे 
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यूँ ही बे-सबब न फिरा करो, कोई शाम घर में भी रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो

कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से 
ये नए मिज़ाज का शहर है जरा फासले से मिला करो 
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लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने मै 
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने मै

फ़ाख़्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकती
कौन साँप रखता है उस के आशियाने में

हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं 
उम्रे बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने मै 
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बाहर न आओ घर मै रहो तुम नशे मे हो 
सो जाओ दिन को रात करो तुम नशे में हो 

बेहद शरीफ लोगों से कुछ फासला रखो 
पी लो मगर कभी न कहो तुम नशे में हो 

कागज़ का ये लिवाज़ चिरागों के शहर में 
जाना सॅभल सॅभल के चलो तुम नशे में हो 

मासूम तितलियों को मसलने का शौक है 
तौबा करो खुदा से डरो तुम नशे में हो 
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