Tuesday, December 15, 2020

राहत इन्दौरी की शायरी….

उँगलियाँ यूँ सब पर उठाया करो
खर्च करने से पहले कमाया करो

ज़िन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे
बारिशों में पतंगें उड़ाया करो
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अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ लोग थे सब खुल के आ गये
 
सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवकूफ
सारे सिपाही मोम के थे घुल के आ गये 
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उसने जिस ताक पे कुछ टूटे दीये रखें हैं 
चॉद तारों को भी ले जाकर वहीं पर र दो 
 
अब कहां ढूंढने जाओगे हमारे क़ातिल 
आप तो क़त्ल का इल्जाम हमीं पर रख दो 
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बुलाती है मगर जाने का नहीं
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं

मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुज़र जाने का नहीं

सितारे नोच कर ले जाऊंगा
मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं
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अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब हैं
लोगो ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया

दो गज सही ये मेरी मिलकियत तो हैं
ऐ मौत तूने मुझको ज़मीदार कर दिया
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झूठों ने झूठों से कहा है कि सच बोलो

सरकारी एलान हुआ है कि सच बोलो


घर के अंदर झूठों की एक मंडी है

दरवाजे पर लिखा हुआ है सच बोलो


गंगा मैया , डूबने वाले अपने थे 

नाव में किसने छेद किया , सच बोलो

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