Monday, June 2, 2025

अच्छा नहीं लगता...जावेद अख़्तर

जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल* रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता

ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इसमें मगर अच्छा नहीं लगता

मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता

बुलंदी पर उन्हें मिट्टी की ख़ुश्बू तक नहीं आती
ये वो शाख़ें हैं जिन को अब शजर** अच्छा नहीं लगता

ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नो ये भी जला डालो
कि सब बे-घर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता

* इसका अर्थ है कि कोई चीज/रास्ता जो पहले से ही इस्तेमाल की गई है, या उस पर बार-बार पैर रखे जा चुके हैं
** शजर का अर्थ पेड़ होता है

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