Monday, June 2, 2025

ज़रा देख तो लो...जावेद अख़्तर

जीना मुश्किल है कि आसान ज़रा देख तो लो
लोग लगते हैं परेशान ज़रा देख तो लो

ये नया शहर तो है ख़ूब बसाया तुम ने
क्यूँ पुराना हुआ वीरान ज़रा देख तो लो

इन चराग़ों के तले ऐसे अँधेरे क्यूँ है
तुम भी रह जाओगे हैरान ज़रा देख तो लो

तुम ये कहते हो कि मैं ग़ैर हूँ फिर भी शायद
निकल आए कोई पहचान ज़रा देख तो लो

ये सताइश* की तमन्ना ये सिले** की परवाह
कहाँ लाए हैं ये अरमान ज़रा देख तो लो

*प्रशंसा
**परिणाम

No comments: