Sunday, May 25, 2025

कब लौट के आओगे बता क्यों नहीं देते... By सलमान अख़्तर

कब लौट के आओगे बता क्यों नहीं देते
दीवार बहानों की गिरा क्यों नहीं देते

तुम पास हो मेरे तो पता क्यों नहीं चलता
तुम दूर हो मुझसे तो सदा* क्यों नहीं देते

कुछ घुट सी गयीं हैं मेरे जज़्बात की साँसे 
तुम अपने इरादों की हवा क्यों नहीं देते 

एक अपने सिवा और किसी को भी न चाहा 
ये बात ज़माने को बता क्यों नहीं देते 

बाहर की हवाओं का अगर खौफ है इतना
जो रौशनी अंदर है, बुझा क्यों नहीं देते

*आवाज़ 

खुल के बातें करें सुनाएँ सब....By सलमान अख़्तर

खुल के बातें करें सुनाएँ सब
कोई तो हो जिसे बताएँ सब

रात फिर कश्मकश में गुज़री है
थोड़ा बतला दें या छुपाएँ सब

कुछ तो अपने लिए भी रखना है
ज़ख़्म औरों को क्यूँ दिखाएँ सब

ले चलूँ आओ तुम को मंज़िल तक
मुझ से कहती हैं ये दिशाएँ सब

काम लोगों के दिल को भा जाए
दिल अगर काम में लगाएँ सब

Saturday, May 17, 2025

करि न फकीरी...संतोष आनंद

करना फकीरी फिर क्या दिलगिरी सदा मगन में रहना जी,
कोई दिन हाथी कोई दिन घोडा कोई दिन पैदल चलना जी,

कैसा भी हो वक्त मुसाफिर पल भर न घबराना जी,
कोई दिन लड्डू न कोई दिन पेड़ा कोई दिन फाखम फाका जी,  

कोई  फरक नहीं होता है राजा और भिखारी में
दोनों की सांसे काटी हैं समय की तेज़ कटारी ने
अपनी ही रफ़्तार से हरदम समय का पहिया चलता जी
कोई दिन महला न कोई दिन सेजा कोई दिन खाक बिछाना जी

माँ से अच्छा कुछ नहीं होता माँ तू ही परमेश्वर है
हरदम मेरे मन मंदिर में तेरी  ज्योत उजागर है
सारे रिश्ते नाते झूठे माँ का प्यार ही सच्चा जी
कोई दिन भइया न कोई दिन बहना सब दिन माँ की ममता जी

कुछ भी पाए गर्व न करिओ दुनियां आनी जानी है
तेरे साथ जहाँ से तेरी परछाई भी जानी है
सबको अपना प्यार बाटना मीठा बोल बोलना जी
कोई दिन मेला कोई दिन अकेला कोई दिन ख़तम झमेला जी

Wednesday, May 14, 2025

न मेरा है न तेरा है ये हिन्दुस्तान सबका है / उदयप्रताप सिंह

न मेरा है न तेरा है ये हिन्दुस्तान सबका है
नहीं समझी गई ये बात तो नुकसान सबका है

हज़ारों रास्ते खोजे गए उस तक पहुँचने के
मगर पहुँचे हुए ये कह गए भगवान सबका है

जो इसमें मिल गईं नदियाँ वे दिखलाई नहीं देतीं
महासागर बनाने में मगर एहसान सबका है

अनेकों रंग, ख़ुशबू, नस्ल के फल-फूल पौधे हैं
मगर उपवन की इज्जत-आबरू ईमान सबका है

हक़ीक़त आदमी की और झटका एक धरती का
जो लावारिस पड़ी है धूल में सामान सबका है

ज़रा से प्यार को खुशियों की हर झोली तरसती है
मुकद्दर अपना-अपना है, मगर अरमान सबका है

उदय झूठी कहानी है सभी राजा और रानी की
जिसे हम वक़्त कहते हैं वही सुल्तान सबका है

Monday, May 12, 2025

कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे... गोपालदास "नीरज"

स्वप्न झड़े फूल से मीत चुभे शूल से
लुट गए सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे

नींद भी खुली न थी कि हाए धूप ढल गई
पाँव जब तलक उठे कि ज़िंदगी फिसल गई
पात पात झड़ गए कि शाख़ शाख़ जल गई
चाह तो निकल सकी, न पर उमर निकल गई
गीत अश्क बन गए छंद हो दफ़्न गए
साथ के सभी दिए धुआँ धुआँ पहन गए
और हम झुके झुके मोड़ पर रुके रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे

क्या शबाब था कि फूल फूल प्यार कर उठा
क्या सरूप था कि देख आइना सिहर उठा
इस तरफ़ ज़मीन उठी तो आसमान उधर उठा
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा
एक दिन मगर यहाँ ऐसी कुछ हवा चली
लुट गई कली कली कि घुट गई गली गली
और हम लुटे लुटे वक़्त से पिटे पिटे
साँस की शराब का ख़ुमार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे

हाथ थे मिले कि ज़ुल्फ़ चाँद की सँवार दूँ
होंठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ
हो सका न कुछ मगर शाम बन गई सहर
वो उठी लहर कि दह गए क़िलए' बिखर बिखर
और हम डरे डरे नीर नैन में भरे
ओढ़ कर कफ़न पड़े मज़ार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे

माँग भर चली कि एक जब नई नई किरन
ढोलकें धमक उठीं ठुमक उठे चरन चरन
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन चली दुल्हन
गाँव सब उमड पड़ा बहक उठे नयन नयन
पर तभी ज़हर भरी गाज एक वो गिरी
पुँछ गया सिंदूर तार तार हुई चुनरी
और हम अंजान से दूर के मकान से
पालकी लिए हुए कहार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे

Saturday, May 10, 2025

ज़िन्दगी की ना टूटे लड़ी....By संतोष आनंद

ज़िन्दगी की ना टूटे लड़ी प्यार कर ले घड़ी दो घड़ी लम्बी लम्बी उमरिया को छोड़ो प्यार की एक घड़ी है बड़ी

उन आँखों का हँसना भी क्या जिन आँखों में पानी न हो वो जवानी जवानी नहीं जिसकी कोई कहानी न हो आंसू है ख़ुशी की लड़ी

मितवा, तेरे बिना लागे ना रे जियरा, लागे ना

आजसे अपना वादा रहा हम मिलेंगे हर एक मोड़ पर दिल की दुनिया बसाएंगे हम ग़म की दुनिया का दर छोड़ कर जीने मरने की किसको पड़ी

लाख गहरा हो सागर तो क्या प्यार से कुछ भी गहरा नहीं दिल की दीवानी हर मौज पर आसमानों का पहरा नहीं टूट जाएगी हर हथकड़ी


देख ली ख्वाब की हर गली
मेरे दिल को मिला ना सुकूँ
तेरे बिन कैसे जीवन जीया
तू मिले तो तुझी से कहूँ
बेवजह उम्र ढोनी पड़ी

प्यार करले घड़ी दो घड़ी

ओ मितवा, ओ मितवा मितवा रे मितवा लागे ना रे जियरा

एक प्यार का नगमा है....By संतोष आनंद

एक प्यार का नगमा है
मौजों की रवानी है
ज़िंदगी और कुछ भी नहीं
तेरी मेरी कहानी है

कुछ पाकर खोना है
कुछ खोकर पाना है
जीवन का मतलब तो
आना और जाना है
दो पल के जीवन से
इक उम्र चुरानी है

ज़िंदगी और कुछ भी नहीं
तेरी मेरी कहानी है

तू धार है नदिया की
मैं तेरा किनारा हूँ
तू मेरा सहारा है
मैं तेरा सहारा हूँ
आँखों में समंदर है
आशाओं का पानी है

ज़िंदगी और कुछ भी नहीं
तेरी मेरी कहानी है

तूफ़ान को आना है
आ कर चले जाना है
बादल है ये कुछ पल का
छा कर ढल जाना है
परछाईयाँ रह जाती
रह जाती निशानी है

ज़िंदगी और कुछ भी नहीं
तेरी मेरी कहानी है

जो बीत गया है वो
अब दौर न आएगा
इस दिल में सिवा तेरे
कोई और न आएगा
घर फूँक दिया हमने
अब राख उठानी है

जिंदगी और कुछ भी नही
तेरी मेरी कहानी है

तुम साथ न दो मेरा
चलना मुझे आता है
हर आग से वाक़िफ़ हूं 
जलना मुझे आता है 
तदबीर के हा‌थों से 
तक़दीर बनानी है 

ज़िंदगी और कुछ नहीं
तेरी मेरी कहानी है

एक प्यार का नगमा है
मौजों की रवानी है
ज़िंदगी और कुछ भी नहीं
तेरी मेरी कहानी है

Friday, May 2, 2025

आने वाले हैं शिकारी मेरे गाँव में / राजेन्द्र राजन (गीतकार)

आने वाले हैं शिकारी मेरे गाँव में
जनता है चिन्ता की मारी मेरे गाँव में

फिर वही चौराहे होंगे, प्यासी आँख उठाए होंगे
सपनों भीगी रातें होंगी, मीठी-मीठी बातें होंगी
मालाएँ पहनानी होंगी, फिर ताली बजवानी होगी
दिन को रात कहा जाएगा, दो को सात कहा जाएगा
आने वाले हैं मदारी मेरे गाँव में
जनता है चिन्ता की मारी मेरे गाँव में

शब्दों-शब्दों आहें होंगी, लेकिन नक़ली बाँहें होंगी
तुम कहते हो नेता होंगे, लेकिन वे अभिनेता होंगे
बाहर-बाहर सज्जन होंगे, भीतर-भीतर रहजन होंगे
सब कुछ है फिर भी माँगेंगे, झुकने की सीमा लाँघेंगे
आने वाले हैं भिखारी मेरे गाँव में
जनता है चिन्ता की मारी मेरे गाँव में

उनकी चिन्ता जग से न्यारी, कुरसी है दुनिया से प्यारी
कुरसी है तो भी खल-कामी, बिन कुरसी के भी दुष्कामी
कुरसी रस्ता कुरसी मंज़िल, कुरसी नदिया कुरसी साहिल
कुरसी पर ईमान लुटाएँ, सब कुछ अपना दाँव लगाएँ
आने वाले हैं जुआरी मेरे गाँव में
जनता है चिन्ता की मारी मेरे गाँव में

केवल दो गीत लिखे मैंने / राजेन्द्र राजन (गीतकार)

केवल दो गीत लिखे मैंने
इक गीत तुम्हारे मिलने का
इक गीत तुम्हारे खोने का

सड़कों-सड़कों, शहरों-शहरों
नदियों-नदियों, लहरों-लहरों
विश्वास किए जो टूट गए
कितने ही साथी छूट गए
पर्वत रोए-सागर रोए
नयनों ने भी मोती खोए
सौगन्ध गुँथी सी अलकों में
गंगा-जमुना-सी पलकों में 
केवल दो स्वप्न बुने मैंने
इक स्वप्न तुम्हारे जगने का
इक स्वप्न तुम्हारे सोने का

बचपन-बचपन, यौवन-यौवन
बन्धन-बन्धन, क्रन्दन-क्रन्दन
नीला अम्बर, श्यामल मेघा
किसने धरती का मन देखा
सबकी अपनी है मजबूरी
चाहत के भाग्य लिखी दूरी
मरुथल-मरुथल, जीवन-जीवन
पतझर-पतझर, सावन-सावन
केवल दो रंग चुने मैंने
इक रंग तुम्हारे हँसने का
इक रंग तुम्हारे रोने का

केवल दो गीत लिखे मैंने
इक गीत तुम्हारे मिलने का
इक गीत तुम्हारे खोने का