कब लौट के आओगे बता क्यों नहीं देते
दीवार बहानों की गिरा क्यों नहीं देते
दीवार बहानों की गिरा क्यों नहीं देते
तुम पास हो मेरे तो पता क्यों नहीं चलता
तुम दूर हो मुझसे तो सदा* क्यों नहीं देते
कुछ घुट सी गयीं हैं मेरे जज़्बात की साँसे
तुम अपने इरादों की हवा क्यों नहीं देते
एक अपने सिवा और किसी को भी न चाहा
ये बात ज़माने को बता क्यों नहीं देते
बाहर की हवाओं का अगर खौफ है इतना
जो रौशनी अंदर है, बुझा क्यों नहीं देते
*आवाज़
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